VIKSIT BHARAT SANKALP YATRA

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आखिर आज की शाम इतनी दुःखदायी क्यों थी?

DIARY

Yash Jangid

2/25/20241 min read

यह आज शाम के करीब 6 बजे होंगे और भीतर विचारों का तूफान उमड़ रहा था, जिसने भारी अशांति और चिंता ला दी थी। मन उखड़ा-उखड़ा सा था, कुछ पसंद नहीं आ रहा था और चिढ़ हो रही थी। इसके पीछे के कारण थे अभी आय का साधन न मिल पाना, यह प्रश्न कि अभी थोड़े समय के लिए लंदन में रहूं या सीधे इंडिया जाऊं? सिर्फ नौकरी लेने पर ध्यान केंद्रित करूं या फिर स्टार्ट-अप करने का भी सोचूं? भारत की सेवा के लिए राजनीति में कैसे जाऊं? सॉलिसिटर बनूं या बैरिस्टर? भविष्य में कौन-कौन सी बड़ी टेक्नोलॉजीज होंगी, उनको कैसे जानूं? इस तरह के भिन्न-भिन्न प्रकार के सवालों ने दिमाग में परमाणु बम छोड़ने शुरू कर दिए।

अभी जैसे मैं लंदन में रह रहा हूं और नौकरी की तलाश जारी है, तो उस दौरान पैसे का भी सोचना पड़ता है कि ऐसे कब तक चलेगा? अगर जल्दी कोई आय का स्रोत नहीं ढूंढा तो इस पराए देश में खर्चा कैसे चलेगा क्योंकि अभी तो घर से जो पैसे मिले हैं, उससे काम चल रहा है। इन सब विचारों ने मिलकर मुझे मायूस और उदास कर दिया था। एक और कारण यह भी था कि मैं पूरे दिन से घर पर अपने कमरे में ही बैठा था जिससे मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। पहले तो एयरपॉड्स लगाकर थोड़ी देर जोशीले गाने सुने पर फिर भी उदासी नहीं जा रही थी, तो यह सोचा कि क्यों न कहीं बाहर चला जाऊं। फिर मैंने कपड़े बदले, ब्लैक कार्गो, ब्लैक हूडी और ब्लैक ही जैकेट पहना। पूरा तैयार होकर किचन में गया, जहां पर मेरे बाकी रूममेट्स श्रेय और भूपेश खड़े थे। श्रेय मशरूम की सब्जी बना रहा था, मैंने उससे उसका ट्रैवल कार्ड लिया क्योंकि उसने एक महीने का पास ले रखा है तो जोन 1 से जोन 2 में फ्री घूमना हो जाता है। जूते पहनकर गाने सुनते-सुनते वेस्ट हैम अंडरग्राउंड स्टेशन की तरफ चल पड़ा, जो घर से करीब पांच से सात मिनट की वॉकिंग दूरी पर है। रास्ते में बारिश भी अच्छी खासी हो रही थी, पर मेरा ध्यान मेरे ख्यालों में ही था।

वेस्ट हैम स्टेशन पहुंचने के बाद सोचा कि कहां जाऊं, तो दिमाग में एक जगह ही आई - कैनरी व्हार्फ चला जाता हूँ। कैनरी व्हार्फ मुझे बेहद अच्छा लगता है क्योंकि वहां बड़ी-बड़ी, नए ज़माने की इमारतें आपको बड़ा सोचने पर मजबूर करती हैं और आंखों को भी अच्छी लगती हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वो वेस्ट हैम स्टेशन से सिर्फ ३ स्टॉप दूर है, मुश्किल से दस मिनट भी नहीं लगता पहुंचने पर। मैंने जुबली लाइन ली और कैनरी व्हार्फ चला गया।

कैनरी व्हार्फ पहुंचने के बाद सोचा अब क्या करूं? मन तो फिर भी उदास और अशांत ही था। सोचा कहीं बैठकर कुछ ठंडा पी लेता हूँ। इसलिए मैं कैनरी व्हार्फ स्टेशन से जुबली मॉल की तरफ ही चला गया क्योंकि उसका रास्ता स्टेशन से ही जुड़ा हुआ था और बाहर बारिश भी हो रही थी। फिर मैं पहुंचा कैनरी व्हार्फ के दूसरे स्टेशन के गेट पर जहाँ से एलिज़ाबेथ लाइन जाती है और उसके सामने कुछ फ़ूड कोर्ट टाइप था जिसका नाम मुझे याद नहीं। उसके अंदर गया फिर वहां बार से एक नॉन-अल्कोहलिक वर्जिन मार्टीनी ले कर टेबल पर आ बैठ गया। फ़ूड कोर्ट अंदर घुसने से पहले, मन ही मन राम नाम ले रहा था और एक श्लोक भी बार-बार बोल रहा था:

"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।

प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम: ॥"

परमात्मा से मुझे इस दुविधा से बाहर निकालने की विनती करता रहा। फिर मैं अपनी ड्रिंक लेकर टेबल पर आ बैठा। मैं शब्दों में अभी बयां नहीं कर सकता कि उस समय किस प्रकार का दुःख महसूस कर रहा था। बैठने के बाद खुद से सवाल करने लगा और दूसरों को ऐसा न लगे कि मैं अकेले बैठे-बैठे बात कर रहा हूँ, इसलिए मैंने वापस एयरपॉड्स लगा लिए। पर एक चीज दिमाग में क्लियर हो रही थी कि मुझे यह आंकलन करने की ज़रूरत है कि मेरी मानसिक ऊर्जा किस विषय पर केंद्रित हो रही है। आंकलन करने पर पाया कि सारी मानसिक ऊर्जा बटी हुई थी, किसी एक वस्तु पर टिकी हुई नहीं थी।

उसके बाद मैं यह फ़िल्टर आउट करने लगा कि मैं कौन सा ऐसा कार्य सिर्फ इसलिए करना चाहता हूँ कि मुझे लोगों से सम्मान मिले या वाह-वाही मिले। वापस खुद से सवाल करने पर ऐसा लगा कि शायद स्टार्ट-अप वाला काम इसलिए हो और अगर राजनीति में जाने का विचार है तो उस विचार में चुनाव जीतना केंद्र बिंदु है या सेवा? फिर सवाल पर सवाल चिंतन चलता रहा।

मुझे अच्छा यह नहीं लग रहा था कि मैं खुदके बारे में सोच रहा, केवल खुदके उद्धार का ध्यान कर रहा। सबसे अधिक पीड़ा का कारण ही यही था। मेरे लिए हमेशा से पहले और सिर्फ खुदका सोचना शर्म की बात रही है। उन विचारों में भी गीता के श्लोक मेरे निर्णय के आधार बन रहे थे। मुझे ऐसा एहसास हुआ कि मुझे सम्पूर्ण त्याग की आवश्यकता है। मुझे मेरी समस्त इच्छाएं त्यागने और निस्वार्थ कर्म करने की ज़रूरत है। स्टार्ट-अप केवल मैं न करूँ, भारत का बच्चा-बच्चा अपने नए विचारों से कुछ न कुछ अपनी पसंद का निर्माण करे और मैं उनका यह सपना सच करने में योगदान कर सकूँ, वह मेरे लिए शांति की बात होगी। श्री परमात्मा ने मुझ पर हर बार किसी न किसी तरीके से कृपा बरसाई है, मैंने ही कहीं अज्ञान या मूर्खता के कारण कभी उससे अनदेखा किया होगा। जो भी विचार आये और जिस निर्णय पर मैं पहुंचा, उसको मैंने काव्य तरीके से अपने X अकाउंट पर फोटो के साथ पोस्ट किया, जो ऐसी है:

https://twitter.com/jangidyash/status/1761853559098806740

मैंने खुदके लिए पाया की न मुझे जीत चाहिए, ना ही हार। मुझे न सुख चाहिए न ही दुःख। मुझे न धन की लालसा, न ही सम्मान की। मुझे न जीने से मतलब न मरने से डर। मैं सेवा करने के लिए सिर्फ चुनावो का ग़ुलाम नहीं बनूँगा। मेरे लिए पद महत्व नहीं है, बल्कि वास्तविक मानव कल्याण जरुरी है। मैं सत्य का ही सहारा लूंगा। मेरे लिए जीवन सिर्फ राम है। मैं उनसे स्नेह करूँगा, कल नहीं पर अभी। मैं मुर्ख बनकर परमात्मा की खोज नहीं करूँगा क्योंकि वह तो मेरे साथ अभी है, इस समय में। भीतर सिर्फ उनके लिए प्रेम भरूंगा और उनको प्रेम करूँगा। जीवन में चाहे जो परिणाम आये पर मैं मेरे सत्य के अनुभवों के आधार पर केवल समाज की सेवा और उसके कल्याण के लिए निस्वार्थ भाव से काम करूँगा। यही मेरे लिए सुख की परिभाषा होगी। यह सारे तप और त्याग के भाव पहले भी मेरे भीतर थे पर न जाने आज का एहसास ही अलग था। ऐसा मानों की कोई दिव्या सन्देश हों।

अंत में मैंने यही निर्णय लिया कि मैं अपना सारा ध्यान केवल मनुष्य जाति और भारत की समस्याओं को कैसे मिटाया जाए, उस पर ही ध्यान दूँ। अपनी सारी मानसिक ऊर्जा लोगों के जीवन को बेहतर बनाने और उनकी परेशानियां कम करने के लिए लगाऊंगा। न पद, न पैसे, न सम्मान, न मान्यता, न पहचान के लिए कोई भी कार्य करूंगा। मुझे सारी इच्छाओं को त्यागने और खुद का अस्तित्व मिटाकर परमात्मा की उत्तम चेतना में काम करना है बस यही चाहिए। अभी भी बहुत सारी चीज़ें उलझी हुई हैं, पर अब जो परमात्मा दिखाए और सिखाए, वही मंज़ूर है।